भारतीय संस्कृतीत १४-विद्या आणि ६४-कलांचा उल्लेख नेहमीच येत असतो. ह्या १४-विद्यांत ४-वेद, ६-वेदांगे आणि ४-शास्त्रांचा समावेश होत असतो. त्यांचा तपशील पुढे दिलेला आहे. ह्यातील अखेरची चार शास्त्रे व त्यांच्या उपशास्त्रांच्या अभ्यासातच सारे विश्व लागलेले असते. मात्र वेद व वेदांगांचा अभ्यास केवळ भारतातच निरंतर सुरू असतो.
वेद-४ ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद, अथर्ववेद
वेदांग-६ शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, ज्योतिष, छंद
शास्त्र-४ न्याय, मीमांसा, पुराणे, धर्मशास्त्र
ह्या सगळ्यांत एक वेदांग आहे छंद. आपल्या संस्कृतीतील अनुभवाचे लेखनसार वृत्तबद्ध काव्यांत संग्रहित करून मौखिक परंपरेने हजारो वर्षे सांभाळण्यात आपल्याला जे देदिप्यमान यश लाभलेले आहे ना, ते केवळ छंदशास्त्राच्या अभ्यासानेच साध्य झालेले आहे. म्हणूनच छंदांना वेदपुरूषाचे पायच म्हटले जात असते. तत्संबंधी मूळ संस्कृत श्लोक असे आहेतः
छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ
कल्पोऽथपठ्यते ।
ज्योतिषामयनं चक्षुः निरुक्तं
श्रोत्रमुच्यते ॥
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य
मुखं व्याकरणं स्मृतम् ।
तस्मात्सांगमधीत्यैव ब्रम्हलोके
महीयते ॥ - अनुष्टुप् छंद
त्यांचा मराठी अनुवादः
वेदांचे पाय हे ’छंद’, ’कल्प’च हात
सांगती ।
वेदांचे नेत्र ’ज्योतीष’, ’निरुक्त’ कान सांगती ॥
घ्राणेंद्रिय असे ’शिक्षा’, ’व्याकरण’ असे मुख ।
आकळता सहा अंगे, लाभे सौख्य अलौकिक ॥ - अनुष्टुप् छंद
मराठी अनुवादः नरेंद्र गोळे २०२००३०५
छंद हे, वेदमंत्रांचे योग्य उच्चारण करण्यास उपयुक्त असलेले वेदांग आहे. ह्यामुळे वैदिक मंत्रांच्या पदांची माहिती मिळते. वेदांत ७ प्रमुख छंद वापरले गेलेले आहेत. त्यांना वैदिक छंद म्हणतात.
वैदिक छंद
१. गायत्री छंदः ८ अक्षरांचे
३ चरण
२. अनुष्टुप् छंदः ८ अक्षरांचे
४ चरण (पाचवे-लघू; सहावे-गुरू, सातवे-२,४,लघू, १,३,गुरू)
३. त्रिष्टुप् छंदः ११
अक्षरांचे ४ चरण (पाचवे लघू, सहावे गुरू)
४. बृहती छंदः
५. जगती छंदः
६. पंक्ति छंदः
७. उष्णिक् छंद:
वेदकाळानंतर रामायण व महाभारत
हे आपले इतिहास ग्रथित करण्यात आले. ह्यांतही बहुतकरून अनुष्टुप् छंदाचाच वापर केलेला
आहे. मात्र त्यादरम्यान इतरही अनेक छंद उदयास आले. ते लौकिक छंद म्हणून ओळखले जातात.
मराठीत आपण त्यांना अक्षरगणवृत्ते म्हणतो.
एन.सी.ई.आर.टी. १२-वी ’शाश्वती द्वितीयो भागः’ छंदोविलास
भूमिका व्हिडिओ, निवेदक प्रा. राजेन्द्र मिश्रा, समन्वयक डॉ. के.सी. त्रिपाठी, डॉ.
रंजीत बेहरा https://www.youtube.com/watch?v=5pzs0jbdBDA (९.४९/१५.१२)
मिनिटे
१ ते २६ अक्षरांची १३,१२,१७,००० वृत्ते संस्कृत भाषेत वर्णिलेली आहेत. १ अक्षराचे वृत्त ’श्री’ हे आहे. मात्र ८ ते २१ अक्षरांची वृत्ते सर्वाधिक लोकप्रिय आहेत. ८ अक्षरांचे सर्वाधिक वापरले गेलेले वृत्त आहे अनुष्टुप् आणि २१ अक्षरांचे वृत्त आहे स्रग्धरा.
लौकिक छंद
अ
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वृत्त
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अक्षरे, यती
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कवी
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लक्षणगीत
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१
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श्रवणाभरण
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२३, य-७,६,६,४
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रामकृष्ण
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अयिगिरि नंदिनी (न,ज,ज,ज,ज,ज,ज,ल,गा)
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२
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मंदारमाला
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२२, य-११,११
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ना.वा.टिळक
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साता तकारी घडे हा जिथे पाद तेथे गुरू एक अंती वसे
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३
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स्रग्धरा
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२१, य-७,७,७
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बाणभट्ट
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म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम्
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४
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शार्दूलविक्रीडित
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१९, य-१२,७
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भर्तृहरी
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सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाःशार्दूलविक्रीडितम्
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५
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पृथ्वी
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१७, य-८,९
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मोरोपंत
|
जसौ जसयला वसुग्रहयतिश्च पृथ्वी गुरूः
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६
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मंदाक्रांता
|
१७, य-४,६,७
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कालिदास
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मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगैर्मोभनौ तौ गयुग्मम्
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७
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शिखरिणी
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१७, य-६,६,५
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भवभूती
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रसैः रुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी
|
८
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हरिणी
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१७, य-६,४,७
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पुष्पदंत
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नसमरसलागःषड्वेदैर्हयैर्हरिणीमता
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९
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पंचचामर
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१६, य-४,४,४,४
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रावण
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जरौ जरौ ततौ जगौ च पञ्चचामरं वदेत्
|
१०
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मालिनी
|
१५, य-८,७
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माघ
|
ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः
|
११
|
वसंततिलका
|
१४, य-८,६
|
रावण
|
उक्ता वसंततिलका तभजाजगौगः
|
१२
|
वंशस्थ
|
१२
|
भारवी
|
जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ
|
१३
|
भुजंगप्रयात
|
१२
|
तुलसीदास
|
भुजंगप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः
|
१४
|
स्त्रग्विणी
|
१२
|
शंकराचार्य
|
रैश्चतुर्भिर्युता स्त्रग्विणी सम्मता
|
१५
|
द्रुतविलंबित
|
१२
|
माघ
|
द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौ
|
१६
|
तोटक
|
१२
|
तोटकाचार्य
|
वद तोटकमम्बुधिसैःप्रथितम्
|
१७
|
शालिनी
|
११, य-४,७
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भास
|
मत्तौ गौ चेच्छालिनी वेदलोकैः
|
१८
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इंद्रवज्रा
|
११
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व्यास
|
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः
|
१९
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अनुष्टुप्
|
०८
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वाल्मिकी
|
अपि स्वर्णमयि लंका न मे लक्ष्मण रोचते
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